नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-22
लक्षणा इस सृष्टि के जन्म से भी पूर्व जब त्रिदेव भी अस्तित्व में नहीं थे। उसके पूर्व से भी शक्ति विद्यमान थी, क्योंकि बिना शक्ति संचार के कोई भी उत्पत्ति, कोई भी रचना कुछ भी संभव नहीं थी। और इस शक्ति की अधिष्ठात्री देवी, मां आदिशक्ति, कल्प कल्पांतर तक महामाया, मोहमाया अनेकों रूपों में विद्यमान थी। ठीक इसी प्रकार आदिदेव परमेश्वर सृष्टि में हमेशा से विद्यमान थे। बस सिर्फ एक सृष्टि की रचना के साथ आदिशक्ति अपनी इच्छानुसार उन्हें एक नए रूप में प्रकट करती है।
यदि हम शास्त्रों की माने तो जब इस ब्रह्मांड में कुछ भी नहीं था, केवल अंधकार के,,,,,! तब भी शक्ति संचार कहीं ना कहीं विद्यमान थी। जैसे मनुष्यों की आयु निर्धारित है। ठीक उसी प्रकार एक सृष्टि की आयु भी निश्चित है, और उसी के अनुसार जिन ब्रह्मांड के त्रिदेव माने जाते हैं, उनकी भी आयु निर्धारित है जिनका विस्तार पूर्वक यदि वर्णन करें तो बहुत समय बीत जाएगा। लेकिन फिर भी लक्षणा तुम्हें संक्षिप्त में बताता हूं।
पृथ्वी का अपनी धूरी पर घूमने में चौबीस घंटे अर्थात हमारा एक दिन और ऐसे तीन सौ साठ दिन, जिसे हम मानव वर्ष कहते हैं।वास्तव में वह मानव की गणना है। इसलिए इसे मानव वर्ष कहना उचित होगा। शास्त्रों के अनुसार तीन सौ साठ दिन का एक वर्ष होता है। जब एक मानव वर्ष पूर्ण होता है तब देवताओं और दानवों का एक दिन पूरा होता है।
सीधी भाषा में कहे जब देवताओं का दिन होता है, तो दानवों के लिए रात्रि का समय होता है। इसे कुछ इस तरह समझ लीजिए। अर्थात सीधी सी बात कहता हूं। दानवों के लिए समय की गणना एक समय है। इस प्रकार जब देवता और दानवों का एक वर्ष पूर्ण हो, तब उसे दिव्य वर्ष कहा जाता है।
इस प्रकार ब्रह्मा जी की आयु को मापने के लिए उसे चार अलग-अलग जीवो में विभाजित कर देखें। तब वेदों के अनुसार उन चार युगों में सतयुग का समय चार हज़ार आठ सौ दिव्य वर्ष, अर्थात सत्रह लाख अट्ठाईस हजार मानव वर्ष। इसके पश्चात त्रेतायुग का कुल समय तीन हज़ार छः सौ दिव्य वर्ष, अर्थात बारह लाख छियानवे हज़ार मानव वर्ष और द्वापर युग का कुल समय चौबीस सौ दिव्य वर्ष, अर्थात आठ लाख चौसठ हज़ार मानव वर्ष। वही कलयुग का कुल समय बारह सौ दिव्य वर्ष, अर्थात चार लाख बत्तीस हज़ार मानव वर्ष होता है। और इन चारों युगों को मिलाने पर चतुर युग को संयुक्त रूप से एक महायुग कहा जाता है।
लक्षणा यदि हम सोचे भी तो यह हमारी समझ से परे है, कि ऐसे एक हज़ार चतुर युग में ब्रह्मा जी का एक दिन और उतनी ही राते होती है। हम जिसे मन्वंतर जो वास्तव में इकहत्तर महायुगों से मिलकर बनता है। ऐसे अगर चौदह मन्वंतर को मिला दिया जाए, तब एक कल्प बनेगा। जो ब्रह्मा जी के लिए मात्र आधा दिन के बराबर है। जब एक ब्रह्मा अपने आयु के पचास वर्ष पूरे करते हैं, तब उसे परार्ध कहा जाता है।
लक्षणा एक ब्रह्मा के साथ ही एक सृष्टि का जन्म होता है। और उन्हीं के साथ सृष्टि का अंत भी हो जाता है। यदि हम पुराणों की माने तब ब्रह्मा जी अपनी सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर उनके साथ ही यह ब्रह्मांड संपूर्ण रूप से नष्ट हो जाएगा। लेकिन वही भगवान विष्णु की आयु ब्रह्मा जी से सात गुना ज्यादा मापी गई है। उसके पश्चात उनसे भी सात गुना ज्यादा देवों के देव महादेव की आयु मापी गई है।
इस प्रकार यह सृष्टि ना जाने कितनी ही बार लचीले और कितनी ही बार मिट गई होगी। लक्षणा हमारी और तुम्हारी आयु की ही कल्पना करना महज एक तिनके के अनेकों टुकड़े करने के बराबर होता है। इन सबसे भी परे और इनको भी शक्ति प्रदान करने वाली मां आदिशक्ति जन्म जन्मांतर से सदा से विद्यमान है। वे कहां किस रूप में और कैसे किस समय होती है। यह सोच पाना भी हमारी सोच से पर है। क्योंकि हम तो सिर्फ इस सृष्टि के एक छोटे से हिस्से का उपयोग करने वाले मानव मात्र है। हमने सिर्फ त्रिदेवों की भक्ति कर उनसे इस सृष्टि के बारे में जानकारी प्राप्त की, और जब यह एक मात्र संसार और उसकी रचना महज जिनकी कल्पना मात्र से हो सकती है। लक्षणा सोचो यदि उनकी भक्ति और समर्थन तुम्हें प्राप्त हो जाए तो क्या संभव नहीं हो सकता हैं??
कदंभ भक्ति से ओत प्रोत होकर मां आदि शक्ति का गुणगान किया जा रहा था। और लक्षणा अवाक सी कदंभ की ओर देख उसकी बातें सुन रही थी। इतनी बड़ी-बड़ी संख्याये, इतना गूढ़ ज्ञान उसने आज तक ना सुना था और ना ही पढा था। वह तो इस सृष्टि को ही वर्ष पर्यंत दिन और रात को ही सच मान बैठी थी।
लक्षणा को लगता था, इसके ठीक विपरीत कदंभ के कहे अनुसार यह तो सब जैसे एक पल मात्रा के लिए होता है। सोचने लायक स्थिति थी, कि जिस जीवन को मनुष्य इतना बड़ा मान इसे सरल और सहज बनाने के लिए दिन-रात मेहनत करता है। वह वास्तव में तो इस सृष्टि का अंश मात्र भी कहलाने लायक भी नहीं है। और उस पर भी कुछ मनुष्यों का ऐसा अहंकार आश्चर्य चकित कर देने वाला है।
लेकिन इन सबके बीच यह तो तय था, कि लक्षणा के मन में आदिशक्ति की भक्ति करने का विचार अवश्य गहरा रहा था। लेकिन पूजन कैसे? कब??और किस विधि से किया जाएगा यह उसे ज्ञात नहीं था। वह कदंभ से कहने लगी,,,,... कदंभ तुम्हारा विचार अति उत्तम है।लेकिन यदि मैं पूजन भी करूं तो उसकी विधि क्या होगी और उस निराकार परब्रह्म, जो ना स्त्री है ना पुरुष हैं। जो सृष्टि की रचना करने के लिए अपनी कल्पना मात्र से संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना करने में सक्षम है। और तुम्हारे कहे अनुसार संसार की समस्त क्रियाएं उन्हीं के द्वारा संचारित की जाती है।
तब कदंभ ने अत्यंत विचार कर और समय की महत्ता को समझते हुए लक्षणा को यही सलाह दी कि ज्यादा अच्छा होगा कि यदि हम यहां से वापसी के दौरान गुरुजी और आचार्य चित्रसेन से मिलेंगे, और तब आगे की रणनीति उन्हीं के विचार से तैयार की जाएगी। यह कहते हुए उन्होंने वापस घर की ओर रुख किया एवम अपनी नानी से मिलकर जाने की इच्छा व्यक्त की।
क्रमशः....